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दीवार नां बनो...( कविता )

                                 दीवार नां बनो...

मेरी मज़बूरी को समझो तुम, नादां मत बनो जो टूट जाऊं मैं छन से, वो दीवार नां बनो

उम्मींद है तुम्हारे साथ, बुढ़ापा बीतेगा मेरा मेरे बुढ़ापे की लाठी बनो, दीवार नां बनो

तुम ही से है रोशन सारे, मेरे घर और परिवार तुमसे है वजूद में, नाम वंश का और आकार

संस्कारों की तुम मेरे, परिवार का आधार बनो दिल बनो दिमाग बनो, बीच दोनों के, दीवार नां बनो

प्यार है, परिवार है, संस्कार सब तुम्हारा मैं हूं, मेरे बच्चें हो, परिवार का, पहला अधिकार तुम्हारा

घर का दुर्भाग्य भी तुम्हीं से तो, घर का सब सौभाग्य तुम्हारा संस्कार-सौभाग्य संगम बनो, बीच दोनों की तुम, दीवार नां बनो

मेरी मजबूरी को समझो तुम, नादां मत बनो जो टूट जाऊं मैं छन से, वो दीवार नां बनो © अभिषेक चतुर्वेदी अभि'

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4 Comments

Mohammed urooj khan

11-Oct-2023 01:04 AM

👌👌👌👌👌

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Gunjan Kamal

08-Oct-2023 01:49 PM

बहुत खूब

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बेहतरीन

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